Saturday, March 7, 2015

नारी की पहचान अलग

नारी की पहचान अलग

रूप अलग, रंग अलग
कर्म भाव भी अलग अलग
विचार अलग, व्यहार अलग
बोलचाल भी अलग अलग
कई बदलते रिश्तो में
नारी की पहचान अलग

पर परिवर्तन की धारा में
प्रश्न  यही बस आता है
प्रेम से जुडे रिश्तो में
सम्मान क्यूँ खो जाता है
हर घर में जब  वो पाई जाती,
तो अबला क्यूँ बताई जाती?

क्यूँ यह भेदभाव?,
क्यूँ यह व्यवहार  अलग?
क्यूँ डर का ख़्वाब ये?
क्यूँ ये प्रहार अलग?

जुड़ने दो सिर्फ प्रेम से उन्हें,
पर रखो उनका सम्मान अलग
उनके बिना निर्जीवन सब
जीवन में उनका, स्थान अलग

 कई बदलते रिश्तो में
नारी की पहचान अलग

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