माँ
जीवन जहाँ अंकुरित होता है,
जहाँ उसे रूप मिलता है,
जहाँ वह पलता है, बढ़ता है,संभलता है,
उस आँगन को माँ कहते है
जिसका धर्म ही सिर्फ देना है,
जिसका फ़र्ज़ सिर्फ सहेजना है,
जो पौधों को रोपता है,
उन्हें अपने लहू से सिंचता है
जिस गंगा में सिर्फ आशीष बहते है,
उस सरिता को माँ कहते है
जिसकी कल्पना में सिर्फ मिठास है
जिसकी याद भर से ही,
एक ताकत का एहसास है ,
जिसने भक्ति दी, जो खुद एक शक्ति है,
जो सिर्फ जीवन देते है,
उस शक्ति को माँ कहते है
भगवान को भी माँ की जरूरत होती है
उससे ही जीवन की शुरूआत होती है ,
वह है तो जीवन है, अथवा यह एक कँटीला वन है
जिसके चरणो में तीनो लोक रहते है ,
उस ममता को माँ कहते है
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